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क्या जरूरी है

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मैं अच्छा लिखता हूं कभी कभी मैं बुरा लिखता हूं  कभी कभी मैं लिखता हूँ फिर सोचता हूँ कि जरूरी क्या है लिखना  लिखना जरूरी है लिखता हूँ तो मन उधड़ता है थोड़ा कुछ गांठे सी है जो खुल जाती है  जब ये तनाव कम होता है  तो अच्छा लगता है विचार जो दिमाग मे कौंधते रहते हैं आ जाते है सामने पन्ने पर अब कचोटना थोड़ा इनका कम होता है तो जरूरी क्या है ये कलम ये पन्ना शायद ये ही है जो जरूरी है उमर ज्यादा है नही पर लगता हैं जीवन ज्यादा हो गया कुछ प्रेम ज्यादा हो गया कुछ सबक ज्यादा हो गया कुछ अपराध भी हुए  तो कुछ जुल्म भी सहे अब सोचता हूँ किसे बताऊं  ये महकमा भी बड़ा ज्यादा हो गया  लोगों को समझाऊं तो समझाने लगते हैं कुछ तो मिलने से पहले ही घबराने लगते है अकेले में जब बैठता हूँ  तब इस जद्दोजेहद से लड़ता हुँ और सोचता हूं क्या जरूरी है लिखना  लिखना जरूरी है... लिखता हूँ तो अपने मन से दो चार हो पाता हूँ लिखता हूँ तो समझ पाता हूँ कि  जीवन मे जरूरी कुछ न है न ये लोग जरूरी है ना ही ये महफिले जरूरी है न ही जरूरी है ये वहम कि  नही चल सकती ये दुनिया मेरे बि...

चाँद

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हम ना हमारा पता इस चाँद से देंगे क्यूंकि पता नही है ना कल तुम कहाँ होगी और मैं कहां ये गलियों गाओं शहरो के पते तो बदले जा सकते हैं इनमे से कुछ भी नही जो चिरस्थायी हो स्थायी है तो ये चाँद चाँद नही बदला जा सकता तो अबसे हम हमारा पता इस चाँद से देंगे मैं भी इस चाँद तले और तुम भी, इस ही चाँद तले.. मुझे पता है कि हमारे पते अब एक ना होंगे जी तो रहे है कहीं पर सकाश नही होंगे तेरी आंखे मेरी आंखों से फिर ना टकराएगी मेरे ठंडे पड़े हाथो को तेरी गरम हथैलियों का एहसास फिर ना होगा शायद फिर ना सँवार पाऊ तेरी गिरती लटों को मै शायद न फिर खींच संकूँ तेरे गाल अपने हाथों से मैं इससे पहले की ये यादें ख़ंजर बने इनके शोर में कहीं हम बंजर बने चाँद था आसमान में तब भी और आगे भी रहेगा तो क्यूँ ना हम हमारा पता इस चाँद से दें मैं भी इस चाँद तले और तुम भी, इस ही चाँद तले.. हो सकता हैं फिर किसी सर्द अलसुबह नींद खुले मेरी निकलूं मैं घर से बाहर तो शायद फिर ना दिखे मुझे तू मेरा इन्तज़ार करती  उस अंधेर गली के मंद रोशनी भरे नुक्कड़ पर  टहलता हुआ जा पहुंचु मैं उस बाग में जहां पेड़ों में से शरमाता चाँद हो और उसके नीचे...