क्या जरूरी है
मैं अच्छा लिखता हूं
कभी कभी
मैं बुरा लिखता हूं
कभी कभी
मैं लिखता हूँ
फिर सोचता हूँ
कि जरूरी क्या है
लिखना
लिखना जरूरी है
लिखता हूँ तो मन उधड़ता है थोड़ा
कुछ गांठे सी है जो खुल जाती है
जब ये तनाव कम होता है
तो अच्छा लगता है
विचार जो दिमाग मे कौंधते रहते हैं
आ जाते है सामने पन्ने पर
अब कचोटना थोड़ा इनका कम होता है
तो जरूरी क्या है
ये कलम ये पन्ना शायद ये ही है जो जरूरी है
उमर ज्यादा है नही पर लगता हैं जीवन ज्यादा हो गया
कुछ प्रेम ज्यादा हो गया
कुछ सबक ज्यादा हो गया
कुछ अपराध भी हुए
तो कुछ जुल्म भी सहे
अब सोचता हूँ किसे बताऊं
ये महकमा भी बड़ा ज्यादा हो गया
लोगों को समझाऊं तो समझाने लगते हैं
कुछ तो मिलने से पहले ही घबराने लगते है
अकेले में जब बैठता हूँ
तब इस जद्दोजेहद से लड़ता हुँ
और सोचता हूं
क्या जरूरी है
लिखना
लिखना जरूरी है...
लिखता हूँ तो अपने मन से दो चार हो पाता हूँ
लिखता हूँ तो समझ पाता हूँ कि
जीवन मे जरूरी कुछ न है
न ये लोग जरूरी है
ना ही ये महफिले जरूरी है
न ही जरूरी है ये वहम कि
नही चल सकती ये दुनिया मेरे बिना
लिखता हूँ तो अपने आप को इंसानियत के और करीब पाता हूं
फिर सोचता हूँ कि क्या होता अगर सब ही लिखते
सब इस कश्मकश से दूर हो कर खुद से मिलते
हो सकता है फिर की समझ पाते
जरूरी क्या है
लिखना
लिखना जरूरी है।
जीवन की आपाधापी में
बहुत कुछ अधूरा छूट गया
कोई सपना अधूरा छूट गया
कोई अपना अधूरा छूट गया
ना जाने कितनी बारिशे आयी
आयी और आके चली गयी
न जाने कितने ही बसंत खिले
और फिर पतझड़ में बदल गए
छूट गयी वो शामें
जहां होते दोस्त और हंसी ठहाके
छूट गए वो बचपन के दिन
और वो बेफिक्री रातें
जब पीछे मुड़ के देखता हूँ
तो एक टीस अजीब सी उठती है
जैसे मैं खड़ा ही रह गया
और जिंदगी गुजरती दिखती है
बैठा हूँ जब भी अकेला तो
सिर्फ खोये हुए समय की गूंजे है
मैं खिड़की से बाहर देखु तो
सिर्फ सूखी बारिश की बूंदे है
कभी सोचा था
एक दिन रुककर
सारे कलों को जियूँगा
जीवन मे ऐसा 'कल' आया ही नही
जब मै 'आज' में रहूंगा
ये अकेलापन ये खालीपन
अब बोझ बड़ा सा बन गया है
लगता जैसे मेरी कहानी से
मेरा ही किरदार उड़ गया है
अब बस मैं सोचता हूँ कि
क्या वाकई ये दौड़ जरूरी थी
जब खुद को भी पीछे छोड़ देना था
ऐसी आखिर क्या मजबूरी थी
सोचता हूँ तो अपने आप को
फिर यथार्थ के करीब पाता हूँ
इस भागमभाग में जब
मैं थोड़ा बहुत लिख पाता हूँ
लिखता हूँ तो भटकाव ये..
थोड़ा कम होने लगता है
और जब आता है ठहराव
तो अच्छा लगता है
विचार जो दिमाग मे कौंधते रहते हैं
आ जाते है सामने पन्ने पर
अब कचोटना थोड़ा इनका कम होता है
तो जरूरी क्या है...
ये कलम ये पन्ना शायद ये ही है जो जरूरी है
लिखना
लिखना जरूरी हैं..
मैं अच्छा लिखता हूं
कभी कभी
मैं बुरा लिखता हूं
कभी कभी
मैं लिखता हूँ
फिर सोचता हूँ
कि जरूरी क्या है
लिखना
लिखना जरूरी है।।
✍️अक्षय
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Kya baat hai.. waah bhai..
ReplyDeleteThank you:)
Deleteजी हाँ आपका लिखना बहुत जरुरी है। क्योंकि कुछ लोग इस कलम से निकले शब्दों में अपनी जिंदगी के अनसुलझे जवाब पाते हैं।
ReplyDeleteजी सही कहा। धन्यवाद।
Deleteक्या खूब लिखा है... 🫡♥️
ReplyDeleteइस मानव जीवन को कितने अच्छे शब्दों में पिरोया है..👍🔥
Thank You😃
Deleteawesome bro
ReplyDeleteThanks Bro👍
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