चाँद


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हम ना हमारा पता इस चाँद से देंगे
क्यूंकि पता नही है ना
कल तुम कहाँ होगी और मैं कहां
ये गलियों गाओं शहरो के पते तो बदले जा सकते हैं
इनमे से कुछ भी नही जो चिरस्थायी हो
स्थायी है तो ये चाँद
चाँद नही बदला जा सकता
तो अबसे हम हमारा पता इस चाँद से देंगे
मैं भी इस चाँद तले और तुम भी,
इस ही चाँद तले..


मुझे पता है कि हमारे पते अब एक ना होंगे
जी तो रहे है कहीं पर सकाश नही होंगे
तेरी आंखे मेरी आंखों से फिर ना टकराएगी
मेरे ठंडे पड़े हाथो को
तेरी गरम हथैलियों का एहसास
फिर ना होगा
शायद फिर ना सँवार पाऊ तेरी गिरती लटों को मै
शायद न फिर खींच संकूँ तेरे गाल अपने हाथों से मैं
इससे पहले की ये यादें ख़ंजर बने
इनके शोर में कहीं हम बंजर बने
चाँद था आसमान में तब भी
और आगे भी रहेगा
तो क्यूँ ना हम हमारा पता इस चाँद से दें
मैं भी इस चाँद तले और तुम भी,
इस ही चाँद तले..


हो सकता हैं फिर किसी सर्द अलसुबह
नींद खुले मेरी
निकलूं मैं घर से बाहर
तो शायद फिर ना दिखे मुझे तू
मेरा इन्तज़ार करती 
उस अंधेर गली के मंद रोशनी भरे नुक्कड़ पर 
टहलता हुआ जा पहुंचु मैं उस बाग में
जहां पेड़ों में से शरमाता चाँद हो और उसके नीचे खड़ा कहीं मैं
पता है अब ठिठुरन होगी
पता है अब जकड़न होगी
सर्दी भी लगेगी मुझे
क्यूँकि गर्माहट के लिए न तेरे हाथ होंगे
और ना ही होगी तेरी बातें
जिनमे भूल सकूँ मैं, जमाने की ये ठंड
अलविदा कहने की हिमायत न कर सका
मेरा पता जो तुझसे साझा होना था ना हो सका
खैर कोई पता साझा न सही तो न सही
एक छत तो साझा है
ये चाँद तो साझा है
तो अबसे ना हम हमारा पता इस चाँद से देंगे
मैं भी इस चाँद तले और तुम भी,
इस ही चाँद तले..


~ अक्षय


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